फिर एक ख्वाब ने डरा दिया
दादी—मां की तमाम तरकीबें याद आ गईं।
बचपन में उठ जाता था जब पसीने—पसीने होकर
पता नहीं कैसे वो जान जातीं
कोई डरावना सपना देखा होगा!
हनुमान चालीसा गातीं,
सिरहाने लोहे का चाकू रखतीं
सिर पर हाथ फेरतीं तो डर गायब, नींद आ जाती।
तब से कई सपने देखे,
और सपनों में मंजिलों के रास्ते!
उन मंजिलों की तलाश में,
मुसाफिर बनकर भटक रहा हूं।
और अब सपने अक्सर डरा दिया करते हैं!
दादी—मां की तमाम तरकीबें याद आ गईं।
बचपन में उठ जाता था जब पसीने—पसीने होकर
पता नहीं कैसे वो जान जातीं
कोई डरावना सपना देखा होगा!
हनुमान चालीसा गातीं,
सिरहाने लोहे का चाकू रखतीं
सिर पर हाथ फेरतीं तो डर गायब, नींद आ जाती।
तब से कई सपने देखे,
और सपनों में मंजिलों के रास्ते!
उन मंजिलों की तलाश में,
मुसाफिर बनकर भटक रहा हूं।
और अब सपने अक्सर डरा दिया करते हैं!
सुन्दर शब्द सामंजस -
ReplyDeleteऊंचे भाव-
आभार भाई |
Kuchh sapne hume dara diya karte hai....need lagti nahi ki jaga diya karte hai.
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