दीपक की बातें

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Tuesday, October 30, 2012

अन्ना बने गेंदबाज

अन्ना हजारे ने कहा कि उन्होंने सरकार के छ: विकेट लिए हैं। यह खुलासा होते ही पूरे भारत के क्रिकेटप्रेमियों में हलचल मच गई है। हर तरफ से अन्ना हजारे को टीम इंडिया में शामिल किए जाने की मांग होने लगी है। अब भारतीय गेंदबाजों के वर्तमान फॉर्म के बारे में तो आप सब जानते ही हैं। एक भी गेंदबाज दो विकेट से ज्यादा नहीं ले पा रहा है। हरभजन सिंह बाहर हैं और जहीर खान से लेकर आर आश्विन समेत तमाम गेंदबाज फॉर्म से बाहर हैं। इस बीच अंग्रेज एक बार फिर लगान वसूलने के लिए भारत की धरती पर पधार चुके हैं। ऐसे में अन्ना हजारे भारत के लिए गेंदबाजी में एक बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं।

अब जरा कल्पना कीजिए कि अन्ना हजारे को टीम इंडिया में बतौर गेंदबाज शामिल कर लिया जाता है। मैच में धोनी विकेट बल्लेबाजी लायक होने के बावजूद टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला करते हैं। अंग्रेज कप्तान हैरान है, रविशास्त्री भी हैरान हैं। वह कहते हैं कि धोनी ऐसा क्यों? धोनी पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब देते हैं? मेरे पास अन्ना हैं !

उधर अंग्रेजों की टीम परेशान है। अब ये अन्ना कौन आ गया। इसका तो कोई गेंदबाजी वीडियो भी नहीं कि जिसे देखकर थोड़ी प्रैक्टिस कर लें! चलो अब बैटिंग तो करनी ही है। अंग्रेज ओपनर बल्लेबाज मैदान पर उतर रहे हैं। भारतीय टीम भी मैदान पर फिल्डिंग करने उतर रही है। अन्ना के हाथ में नई गेंद है।

आते ही अन्ना पहले सभी फील्डरों को बुलाते हैं। सब गोल घेरे में खड़े हो जाते हैं। थोड़ी देर के बाद सभी पिच पर गोल घेरा बनाकर बैठ जाते हैं। कमेंटेटर हैरान! दोनों अंपायर हैरान! अंग्रेज बल्लेबाज हैरान! अन्ना जेब से टोपी निकालकर पहन लेते हैं। टोपी पर लिखा है मैं गेंदबाज हूं। टीम इंडिया के बाकी खिलाड़ी भी अपनी जेब से टोपी निकालकर पहन लेते हैं। किसी की टोपी पर लिखा है— मैं पेप्सी हूं। किसी की टोपी पर लिखा है— मैं रीबॉक हूं। धोनी और सचिन डिसाइड नहीं कर पा रहे हैं कि कौन सी टोपी पहनें। दरअसल दोनों ने इतने ज्यादा विज्ञापन करार साइन कर रखे हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि किसे दिखाएं किसे ना दिखाएं। डर है कोई कंपनी नाराज न हो जाए।

उधर बीसीसीआई वाले भी परेशान हैं। न्यूज़ चैनल इसे लाइव दिखा रहे हैं। इस बीच टीम इंडिया का कोई सदस्य अन्ना से पूछता है कि हम इस तरह क्यूं बैठे हैं? ऐसे विकेट कैसे मिलेगा? अन्ना तब अंदर की बात बताते हैं। वह कहते हैं कि वैसे भी तुम लोग दौड़—भाग कर नहीं पाते। एक रन की जगह तीन रन दे देते हो। कैच पकड़ नहीं पाते हो। इसलिए हम लोग आमरण अनशन कर रहे हैं। मुझे छह—सात दिन तक अनशन करने का अनुभव है। देखना एक—दो नहीं पूरे सोलहों विकेट गिरेंगे। टीम इंडिया का नया सदस्य संशय में है। और कहीं हम लोग गिर पड़े तो?

Friday, October 26, 2012

मेरे साथ चलो

 
घनी उदास और स्‍याह शाम के बीच,
गहराते अंधेरे में, जब रोशनी डूब रही हो कण-कण
जिंदगी मुझे मेरे मुकद्दर की तरफ खींच रही हो
और मैं अपना मुकाम बनाने की जिद पर आमादा।
वक्‍त की सलवटों को फिर करीने से सजा देने की धुन लिए
दिल में जिंदा रखे चमत्‍कारों की एक आशा
गुजर जाऊं रास्‍ते पर जमे उन पत्‍थरों से
जिनपर ठोकरें खाकर गिरता रहा अब तक।
मेरे लिए मांगी गई तमाम दुआओं
आओ तुम सब भी मेरे साथ चलो।

Wednesday, October 10, 2012

सिंगल स्क्रीन की 'उम्मीदें'


मुझे फिल्में देखने का जबर्दस्त चस्का है। इतना कि जब तक हफ्ते में तीन-चार फिल्में ना देख लूं चैन नहीं पड़ता। अब इतनी फिल्में देखनी हैं तो मल्टीफ्लेक्स तो अफोर्ड नहीं कर पाउंगा। एेसे में मेरा ठिकाना बनते हैं सिंगल स्क्रीन थिएटर्स। कानपुर में रहने के दिनों की जितनी यादें हीर पैलेस, सपना और गुरुदेव पैलेस से जुड़ी हैं, उतनी रेव थ्री, रेव मोती या आइनॉक्स की नहीं हैं। एेसे में सिंगल स्क्रीन थिएटरों को लेकर मेरा भावुक होना लाजिमी है।

आमतौर पर सिंगल स्क्रीन थिएटर्स में किस स्तर की फिल्में लगती हैं ये सबको पता है। देशभर में सिंगल स्क्रीन थिएटर्स का हाल किसी से छुपा नहीं है। अपने शहर इंदौर में भी सिंगल स्क्रीन थिएटर्स किस हालत में हैं सबको पता है। एेसे में हाल में रिलीज हुई कुछ फिल्में इन सिंगल स्क्रीन थिएटर्स के लिए एक हसीन फुहार की तरह साबित हो रही हैं। हाल ही में रीगल सिनेमाहॉल में फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश देखने पहुंचा। रीगल को लेकर मेरा अब तक का अनुभव यही रहा है कि यहां युवाओं के पसंद की बोल्ड फिल्में लगती हैं। पूरे हफ्ते फिल्म के शोज फुल रहते हैं और काफी हद तक कमाई हो जाती है।

इस बार सिनेमा हॉल के बाहर इंग्लिश-विंग्लिश का पोस्टर देखकर थोड़ी हैरानी हुई। टिकट खिड़की पर लंबी लाइन लगी हुई थी। इसमें सिर्फ युवा या छात्र ही शामिल नहीं थे बल्कि फैमिली के लोग भी बड़ी तादाद में आए हुए थे। के नहीं, फैमिली क्लास के लोग भी आए हुए थे। मेरे लिए यह हैरान करने वाला सुखद अनुभव था।कुछ दिन पहले एेसा ही अनुभव आस्था सिनेमाहॉल में फिल्म ओह माय गॉड को देखते हुए हुआ था। यहां भी बड़ी तादाद में भीड़ उमड़ी हुई थी। तमाम परिवार वाले यहां मौजूद थे। निश्चित तौर पर सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल के मालिकों को उनके इस हिम्मतभरे कदम के लिए शाबाशी देनी चाहिए।

ओह माय गॉड और इंग्लिश-विंग्लिश को मल्टीप्लेक्स नेचर की फिल्में कहा जा सकता है। सिंगल स्क्रीन पर इसे लगाना जोखिम का काम है। पहले ही अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के मालिक एेसी फिल्में कम ही लगाते हैं। उन्हें डर होता है कि फैमिली वाले तो सिंगल स्क्रीन में आएंगे नहीं। एेसे में कहीं घाटा हो गया तो उबरना बेहद मुश्किल हो जाएगा। यही वजह है कि अब तो बहुत से सिंगल स्क्रीन्स में बी या सी ग्रेड की फिल्में ही लगने लगी हैं। इसके पीछे मालिकों की मंशा किसी तरह फिल्म की लागत भर निकाल लेने की होती है। मगर जिस तरह से ओह माय गॉड और इंग्लिश-विंग्लिश को दर्शकों ने रिस्पांस दिया है, इससे निश्चित तौर पर सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के मालिकों को एक आस बंधी होगी।

अगर सिंगल स्क्रीन थिएटर्स में फैमिली लायक माहौल, अच्छी फिल्में और थोड़ा स्तरीय सुविधाएं मिलें तो दर्शकों को वापस मोड़ा जा सकता है। हां, लेकिन इसके लिए सिंगल स्क्रीन मालिकों को हिम्मत दिखानी होगी।

Tuesday, October 2, 2012

तुम, मैं, चाँद और मोहब्बत

मैं कल रात बहुत देर तक
छत पर खड़ा घूरता रहा चाँद को
ढूँढता रहा तुम्हारा चेहरा चाँद के चेहरे में
करीब आधे घंटे तक की मैंने कोशिश
मगर तुम नहीं नज़र आई चाँद में
मैंने मन ही मन उलाहने भेजे उन कवियों को
जो जाने क्या कल्पनाएँ कर गए हैं चाँद को लेकर
मैं छत से उतर आया और दिल में तलाशने लगा तुम्हें
मगर इस मांस के छोटे से लोथड़े ने
वहां तुम्हारा वजूद होने से इंकार कर दिया
मैं हैरत में था
क्या मैं तुमसे थोड़ा भी प्यार नहीं करता
क्या तुम मुझसे थोड़ा भी प्यार नहीं करती
फिर क्यूँ तुम मुझे नहीं दिखी, चाँद में और दिल में
अचानक मेरे कानों में तुम्हारी आवाज़ आई
अरे मैं किचन में हूँ, छोटे को पकड़ो