घनी उदास और स्याह शाम के बीच,
गहराते अंधेरे में, जब रोशनी डूब रही हो कण-कण
जिंदगी मुझे मेरे मुकद्दर की तरफ खींच रही हो
और मैं अपना मुकाम बनाने की जिद पर आमादा।
वक्त की सलवटों को फिर करीने से सजा देने की धुन लिए
दिल में जिंदा रखे चमत्कारों की एक आशा
गुजर जाऊं रास्ते पर जमे उन पत्थरों से
जिनपर ठोकरें खाकर गिरता रहा अब तक।
मेरे लिए मांगी गई तमाम दुआओं
आओ तुम सब भी मेरे साथ चलो।
गुजर जाऊं रास्ते पर जमे उन पत्थरों से
जिनपर ठोकरें खाकर गिरता रहा अब तक।
मेरे लिए मांगी गई तमाम दुआओं
आओ तुम सब भी मेरे साथ चलो।
अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई भाई जी ||
Thank u!
Deleteगहन भाव रचना..
ReplyDeleteसुन्दर..:-)
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात....
अनु