कोई कविता नहीं
कोई ग़ज़ल नहीं
तुम्हारे सिवा
जिंदगी में कोई पल नहीं
फिर ये उदासी
क्यों है तारी सी
जेहन पर छाई
एक खुमारी सी
तुमसे बात कर लूं तो
शायद थोड़ा सुकून आए
मगर कर नहीं पाता
तुम्हारा ख्याल रखता हूं!
मुझे पता है, तुम्हें भी
शायद मालूम होगा
ये उलझनें क्यूं हैं
क्यूं मुझे सुकून नहीं!
सोचता हूं तुम्हें बता दूं
फिर सोचता हूं तुम क्या सोचोगी
सोचता हूं तुम खुद समझ जाओ
फिर सोचता हूं चलो ऐसे ही सही!
कोई ग़ज़ल नहीं
तुम्हारे सिवा
जिंदगी में कोई पल नहीं
फिर ये उदासी
क्यों है तारी सी
जेहन पर छाई
एक खुमारी सी
तुमसे बात कर लूं तो
शायद थोड़ा सुकून आए
मगर कर नहीं पाता
तुम्हारा ख्याल रखता हूं!
मुझे पता है, तुम्हें भी
शायद मालूम होगा
ये उलझनें क्यूं हैं
क्यूं मुझे सुकून नहीं!
सोचता हूं तुम्हें बता दूं
फिर सोचता हूं तुम क्या सोचोगी
सोचता हूं तुम खुद समझ जाओ
फिर सोचता हूं चलो ऐसे ही सही!
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