दीपक की बातें

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Tuesday, November 6, 2012

मच्छर और आतंकी

कल रात मेरे हाथों एक मच्छर का कत्ल हो गया
हुआ यूं कि अखबार में था मेरा ध्यान
मच्छर आकर कान में देने लगा ज्ञान
मैंने अखबार लहराया,मच्छर उसकी चपेट में आया
और अखबार पर रक्त की बूंदें मेरे गुनाह का सुबूत थीं।
मुझे अफसोस हुआ! अचानक मुझे वो मच्छर याद आने लगा
जिसने काटा था आतंकी कसाब को
सोचा, कौन जाने ये वही मच्छर रहा हो
कसाब को काटने के बाद बहादुरी में इतरा रहा हो
जो देश की सरकार ना कर सकी
उसे अपनी वीरगाथा बता रहा हो।
फिर तो मच्छर के प्रति सहानुभूति उमड़ आई
मैंने अखबार पर नजर दौड़ाई
वहां खून की बूंदे देख तसल्ली हुई
वाह, देखो क्या मौत मरा है जवान
जाते—जाते अखबार पर छोड़ गया निशान।

2 comments:

  1. मच्छर नहिं कमजोर जो, मार सके अखबार ।

    मार सकोगे तभी जब, हो दोतरफा वार ।

    हो दोतरफा वार , प्यार है अघ-कसाब से ।

    कर डेंगू का वार, मारता बेहिसाब ये ।

    आई-क्यु की कर बात, गडकरी जैसे लगते ।

    बढ़िया मौका पाय, दनादन मुंह से हगते ।

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