तस्वीर गूगल से साभार |
वो बाग़ में आमों का झुरमुट
पेड़ पर चढ़ना और डालियाँ हिलाना
फिर पूछना तुमसे,
क्या कोई पका आम गिरा है
कोई जवाब न मिलना
और तुम्हारा कच्चे आमों पर लट्टू होना
कच्ची उम्र की तमाम यादें
इंटर या बीए के साल की
जब पहली बार बेहाल हुए थे
हाँ-हाँ उसी साल की
बदलते मौसम में तुम्हारा मेरे गाँव आना
बरसती बूंदों सा मुझ पर छा जाना
और तुम्हारे जाते ही गाँव का मौसम बदल जाना
फिर अगले साल तक पहली बारिश का इंतज़ार
और पहली जून से ही मेरा बेचैन हो जाना
बीत चुके हैं बरसों तुम्हे आये मेरे गाँव में
पर यादों का मौसम आबाद है तुम्हारी यादों से
लगता है जैसे सब कल ही की तो बात है
कभी फुरसत निकालो, फिर आओ
मेरे गाँव का मौसम बदल जाओ
हमने भी कई आम के पेड़ लगाये हैं
उनकी शाखों पर झूमती तुम्हारी अदाएं है
http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/07/blog-post.html
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना दीपक जी....
ReplyDeleteरश्मि दी के ब्लॉग से यहाँ तक पहुँची....
अनु
शुक्रिया अनु जी। आप लोगों के कमेंट़स से हौसला कायम है।
ReplyDeleteachchha alga aaam ka mausam kavita me lipibadhh hote dekh kar:)
ReplyDeletemain bhi rashmi di se pata puchh kar aa raha hoon:D
एक संक्षिप्त परिचय ( थर्ड पर्सन के रूप में )तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
ReplyDeleteब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र .... कोई सम्मान , विशेष पत्रिकाओं में प्रकाशित हों तो उल्लेख करें rasprabha@gmail.com per