दीपक की बातें

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Sunday, May 6, 2012

बोलो साथी

बोलो साथी
तुम बिन जीना मुश्किल कैसे मर जाना आसान है क्यूँ
मिलने में बरसों लग जाते छुट जाना आसान है क्यूँ
बोलो साथी

बोलो साथी कैसे हैं ये मेल-मिलाप, जुडन-बिछुड़न
साथ हो तो सब अपने लगते दूर हो तो सब अनजान हैं क्यूँ 

बोलो साथी
हम-तुम सपनों की नगरी में कितनी बातें करते हैं
हाथों में हाथों को थामे मीलों चलते रहते हैं
मगर हकीकत की दुनिया में ये सब नाफरमान है क्यूँ
बोलो साथी

एक हमारे दिल हैं, धड़कन, जज्बातों में भाव हैं एक
एक हमारा नाता-रिश्ता, दिल भी एक, चाह भी एक
दो जिस्मों में एक ही दिल है, फिर हम दो इंसान हैं क्यूँ
बोलो साथी

इश्क तुम्हारा इश्क है मेरा, जान तुम्हारी मेरी जान
आँखों में तेरा चेहरा है, कानो में तेरी ही बात
सांसों में तेरी ही सांसें, फिर अलग-अलग पहचान है क्यूँ
बोलो साथी




Deepak Mishra





1 comment:

  1. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...!!

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