दीपक की बातें

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Monday, April 9, 2012

अनाकरली...डिस्को क्यों चली?


मसला बेहद पेचीदा हो चला है इसलिए जनता दरबार में पेश कर रहा हूं। आखिर ऐसा क्‍या हो गया कि जिस अनारकली के लिए सलीम ने मुगलिया सल्तनत से पंगा ले लिया आज वह उसी सलीम को छोड़-छाड़ कर डिस्को चल दी? मां बदौलत के दरबार में जब सलीम ने बगावत की होगी तो उसे अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि वक्त ऐसा भी सितम उस पर ढाएगा।

यह भी ताज्जुब की बात है कि इसी सलीम की मोहब्बत की खातिर कभी अनारकली ने दीवार में चुनवाया जाना कुबूल कर लिया था। मुगलिया दरबार में जिस अनारकली ने 'प्यार किया तो डरना क्या' गाया, आज वही अनारकली बाजार की धुन पर डिस्को में ठुमके लगाने पर आमादा है।

क्यूं अनारकली क्यूं? क्या सलीम की आत्मा बादशाह अकबर की आत्मा को कैसे फेस कर रही होगी? बादशाह अकबर की आत्मा सलीम को सुना रही होगी- देखा शेखू, जिस रक्कासा को तू अपनी महबूबा बनाने की ठाने था उसने कैसे रंग बदल लिए हैं। आखिर उसे बाजार ही रास आया।

वहीं पास में कहीं के आसिफ भी तड़प रहे होंगे, कौन है ये नामाकूल साजिद खान? जिसने हमारी बरसों की मेहनत के बाद बनाई मोहब्बत की पाक दास्तान को यूं नापाक किया है। अनारकली ही मिली थी उसे डिस्को भेजने के लिए? अरे शीला, मुन्नी से लेकर जलेबीबाई तक को तो ये लोग बदनाम कर चुके हैं। अब अनारकली को भी नहीं छोड़ा।

वहीं अनारकली को मनाने की तमाम कवायदें हो रही हैं। सलीम तो सलीम बादशाह अकबर भी लगे हैं। अरे मान भी जाओ अब! ये जिद छोड़ दो। इस तरह डिस्को जाओगी तो लोग क्या कहेंगे? आखिर इतनी पुराने जमाने की मोहब्बत की मिसाल हो। मुगलिया सल्तनत के एक राजकुमार ने कभी इश्क फरमाया था तुम्हारे साथ। क्यों तुम उसे नापाक करने पर तुली हो? मुगलिया सल्तनत का जिक्र आते ही वह चिढ़ जाती है। वाह जहांपनाह! जिस मुहब्‍बत के लिए आपने मुझे भटकने के लिए छोड़ दिया आज उसी मुहब्‍बत का आप मुझे वास्‍ता दे रहे हैं?

अनारकली का लॉजिक अलग है। वह बादशाह अकबर से कहती है अब मैं आपके इस मुगलिया सल्तनत के झूठे अहंकार पर कुर्बान नहीं होने वाली। इसी का वास्ता देकर आपने मुझे अपनी सल्तनत से दर-ब-दर कर दिया। मैं अपनी मां के साथ कहां-कहां नहीं भटकी। आगरे से चली थी 1960 में आज 2012 में मुंबई पहुंची हूं। आपको कहां फिकर रही मेरी। अब जाकर साजिद खान ने मुझे सही रास्ता दिखाया है। डिस्को जाकर मैं दुनिया मेरे साथ थिरकेगी, मेरे नखरे उठाएगी मैं सबकी नजरों में तो रहूंगी। मेरी मार्केट वैल्यू तो बढ़ेगी। पेट भर खाना और ऐश-ओ-आराम तो मिलेगा।

आपको आपकी मुगलिया सल्तनत मुबारक...अनारकली डिस्को चली...

2 comments:

  1. सवाल दर सवाल हैं पोस्ट में। दरअसल सिनेमाई गीतों में मार्केट रेपो का खयाल रखा जा रहा है, कह सकते हैं यूएसपी ढूंढी जा रही है। म्यूजिक चार्ट में आगे बने रहने के शाब्दिक तिकरमों का सहारा लिया जाता है और अनारकली का डिस्को जाना इसका एक नमूना भर है। परेशान होने की बात नहीं है क्योंकि इस दौर में भी बड़ी प्यारी नज्में पिरोयी जा रही है। उम्मीदों की लौ जलाए रखें और ऐसे गीतों को नजरअंदाज कर दें..

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  2. घोर कलयुग है जो कुछ न हो जाय थोड़ा ही है !:)

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