दीपक की बातें

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Friday, December 3, 2010

'शूल' के बहाने

अभी कुछ दिन पहले फिल्म 'शूल' देख रहा था। एक दृश्य में समर प्रताप बने मनोज बाजपाई के ऊपर गुंडे हमला करते हैं, वह अपनी बेटी को बचने कि कोशिश करता है, मगर उसकी बेटी घायल हो जाती है। गुंडों को मजा चखाने के बाद जब समर होश संभालता है तो अपनी घायल बेटी कि मदद के लिए पुकारता है। सैकड़ों की भीड़ में से कोई भी सामने नहीं आता। यह देखकर मुझे और मेरे सात फिल्म देख रहे बंधू को गुस्सा आता है। खैर वहां तो सब स्क्रिप्ट के मुताबिक सब कुछ था। मगर ऐसी घटना अगर हकीकत में हो तब भी क्या जनता इतनी असंवेदनशील रहेगी? क्या भीड़ से कोई भी किसी समर प्रताप की मदद करने के लिए आगे नहीं आएगा? ये सवाल चुभते हुए हो सकते हैं मगर हैं जायज। ज़रा सोचियेगा?

2 comments:

  1. Achcha chintan hai... bhai India mein to bheed itni badh gayi hai ki sabko apne se hi fursat nahi... filmo mein badha-chadha kar hi sahi lekin jo dikhate hain wo kisi an kisi rup mein hamare samaj ka hi chitran hota hai...

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  2. दीपक मिश्र जी, बहुत खूब. अच्छा चिंतन है........

    पर अब तक तो वो लोग भी सो गए जो इस समाज को जगाने आये थे.

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