गुजर जाता हूं बहुत जल्दी से तुम्हारी राह से
कि तुम फिर मिल न जाओ इसलिए कतराता हूं
तुमसे मिलने के लिए कितने बहाने करता था
तुम्हारी गली तक आने को बेकरार रहता था
एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार
और अनगिनत बार, जाने कितनी बार
मगर अब ये सिलसिला टूट चुका है
तुम तो वहीं हो, पर दिल अब रूठ चुका है
अब तो 10 किलोमीटर का अतिरिक्त फासला तय कर जाता हूं
सिर्फ तुम्हारी गली से बचने के लिए
जाने कहां—कहां से गुजर जाता हूं!
कि तुम फिर मिल न जाओ इसलिए कतराता हूं
तुमसे मिलने के लिए कितने बहाने करता था
तुम्हारी गली तक आने को बेकरार रहता था
एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार
और अनगिनत बार, जाने कितनी बार
मगर अब ये सिलसिला टूट चुका है
तुम तो वहीं हो, पर दिल अब रूठ चुका है
अब तो 10 किलोमीटर का अतिरिक्त फासला तय कर जाता हूं
सिर्फ तुम्हारी गली से बचने के लिए
जाने कहां—कहां से गुजर जाता हूं!
सिर्फ तुम्हारी गली से बचने के लिए
ReplyDeleteजाने कहां—कहां से गुजर जाता हूं!
वाह क्या बात कही है ... आपने इन पंक्तियों में अनुपम भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
भईया, कुछ पूराने पल याद आ गये ये कविता पढ़ के....
ReplyDelete