दीपक की बातें

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Saturday, September 10, 2011

फेसबुक पर लिख्‍ात-पढ़त

तुम्‍हारे आगोश में एक सदी का वक्‍त, जैसे एक लम्‍हें में गुजरा
शाम कतरा-कतरा ढलती रही, जिंदगी हमारे दरमियां सिमटती रही
 
तुम्‍हारी निगाहें हमें बुला रही थीं,
अदाएं तो बस कयामत ढा रही थीं
हर हुकूमत से लड़ जाएंगे,
इश्‍क किया तो ये हुनर सीखा है

तुम्‍हारा वजूद, मेरे जज्‍बात सलामत रहें,
तुम्‍हें नजर ना लगे, हमारा प्‍यार सलामत रहे
दो लफ्ज काफी नहीं हमारी मोहब्‍बत बयां करने के लिए
तुम चाहे कुछ भी कर जाओ, मैं तुम्‍हें यूं ही चाहता रहूंगा
(भारत की लगातार हार के बावजूद क्रिकेट का मोह नहीं छोड़ पाने पर)
नज़र से गुफ्तगू की कभी ज़बां नहीं खोली,
इज़हारे-ए-इश्‍क की ये अदा भी खूब रही।
कयासबाजियों में ही बीता वो दौर मोहब्‍बत का,
हम सही समझे तो भी ग़लत और ग़लत समझे तो भी ग़लत।
अरे फेसबुकिए मित्र, तुम बड़े अजनबी से लगते हो
कोई स्‍टेटस लाइक नहीं करते, कभी कमेंट नहीं करते
मोहब्‍बत की, प्‍यार की बातें
बेकार हैं इश्‍क के इजहार की बातें
जब मैं तुम्‍हारे ख्‍वाबों ख्‍यालों से दूर चला जाऊंगा
याद करना चाहोगी मुझे, पर मैं याद भी ना आऊंगा
अजीब पशोपेश से गुजर रहा हूं इन दिनों,
ना तुम्‍हारी याद आती है, ना तुम्‍हारा ख्‍याल जाता है
(इंग्‍लैंड में भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन पर )
जिनके लिए मैंने रात की नींद कुर्बान कर दी
कम्‍बख्‍त मुझे दो पल की खुशी भी ना दे सके
(टी-20 में टीम इंडिया की हार पर )
वो मुस्कुराएँ तो दिल को कुछ सुकून मिले
पर वो जाने किस जन्म का बैर ठाने बैठे हैं.
कई दिनों से वो मेरी तरफ नहीं आये
कई दिनों से हम उनकी गली से नहीं गुज़रे
कई दिनों से निगाहों ने देखा नहीं उनको
खुदा खैर करे, उन्हें किसी की नज़र ना लगे.
सुना था तुम्हारे शहर में बेदर्द रहते हैं
आज हमको भी इस बात का अंदाज़ा हो गया.
जुदा होकर भी उसका अहसास दिल में अभी बाकी है,
उसके वजूद को हम ख्यालात में भी महसूस करते हैं.
फिर किसी मोड़ पर मुलाकात हो जाने की आस में,
हम उनकी मोहब्बत का दिया दिल में जलाये फिरते हैं.
ना साथी ना सहारा है,
ज़िन्दगी तनहा बंजारा है
निगाहें ढूँढती हैं चेहरा कोई पहचाना,
मगर इस भीड़ में हर शख्स अनजाना है.
 

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