दीपक की बातें

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Wednesday, August 12, 2009

एक शाम कुछ ऐसी

नौ अगस्त का दिन मेरा वीकली ऑफ़। दिन भर रूम में ही पडा रहा। शाम ढली तो सोचा ज़रा घूम-घाम लिया जाए। फ़िर क्या निकल पड़े, मॉल रोड की तरफ़। मेगा मॉल में बिग एफएम का ऑफिस शांतनु सर का साथ, और कुछ बातें। दरअसल कानपुर में यही वो एक जगह है जिसके बारे में मैं थोड़ा दावा कर सकता हूँ की इसे जनता हूँ। जबसे कानपुर आया हूँ शांतनु सर से अक्सर यहीं मुलाकात होती है। यही अक्सर हीर पैलेस में फिल्मे भी देखने आता हूँ। शांतनु सर ने भी वहीँ से पढ़ाई की है जहाँ से मैंने। मतलब पूर्वांचल यूनिवर्सिटी जौनपुर से। वो मुझसे दो बैच पहले के हैं और यहाँ बिग एफएम में काम कर रहे हैं।

उनसे हाल-चाल चल ही रही थी की आर जे आर्यन आ गए। फ़िर तो खूब बातें हुईं। रेडियो, कमल शर्मा, ओपी राठोर, युनुस खान से लेकर आर जे की आवाज़ के बारे में। काफी देर तक बात के बाद जब शाम ढलने लगी तो मैं चलने को हुआ। बाहर बदल बरस चुके थे और धुली हुई सडकों को क़दमों से नापता मैं मस्ती में चला जा रहा था। तभी नज़र सामने भुट्टे वाले पर पड़ी। मन मचल उठा, एक भुट्टा लिया और आसमान से कभी-कभी टपक पड़ती ठंडी बूदों के बीच गर्म भुट्टे का लुत्फ़ उठाने लगा।

अजनबी शहर में अनजाने रास्तों पर कदमबोशी करते हुए मैं सोच रहा था की पता नहीं कितने दिनों बाद यह लम्हा मुझे मिला है। वैसे शहर की अजनबियत इस मामले में मेरी मददगार साबित हो रही थी और मैं बिना किसी खटके के भुट्टे के दानों की गर्मी अपने होठों पर महसूस कर पा रहा था। अपने शहर ऐसे मौके कभी-कभार ही आपको मिलते हैं। सड़क पर चलते हुए तो और भी रिस्क रहता है। एक ही बात का खटका कोई परिचित न मिल जाय। और जब आप अखबार की दुनिया से ताल्लुक रखते हों तो फ़िर ऐसा होने के चांसेस और भी बढ़ जाते हैं।

खैर मैंने शाम को पूरी शिद्दत के साथ एन्जॉय करते हुए चहलकदमी कर रहा था की गहराते अंधेरे ने मेरे दिमाग की घंटी बजाई, बेटा वापस रूम पर भी जाना है। रिक्शा पकड़ा और रूम पर वापस आ गए।

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