दीपक की बातें

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Tuesday, March 11, 2014

‘गुलाब गैंग’ वहां से शुरु होती है जहां से जूही का किरदार शुरु होता है


(शुक्रिया दिनेश सर, इसे अपने ब्लॉग पर जगह देने के लिए! दिनेश सर के ब्लॉग पर यहां से जाएं...
http://indianbioscope.com/cinema/gulab-gang-juhi-chawla/20140310/)

फिल्म ‘गुलाब गैंग’ कैसी है और कैसी नहीं इस पर तो कई फिल्म विशेषज्ञ चर्चा कर चुके हैं। मेरा मकसद फिल्म की विवेचना करना कतई नहीं। यहां तो मैं गुलाबी रंग से हटकर फिल्म के एक अलग रंग का जिक्र करना चाहता हूं।

Juhi Chawla in Gulab Gangजी हां, यह रंग था जुही चावला के नायाब अभिनय का। एक ऐसी अभिनेत्री जिसका साल-दर-साल ख्याल आते ही तस्वीर बना करती थी एक चुलबुली बाला की। मस्ती में मगन और बिंदास हंसती हुई। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि खुशमिजाजी और मस्ती के आलम में सराबोर यह अदाकारा जब परदे पर एक करप्ट पॉलिटिशियन का किरदार आत्मसात करेगी तो कहर बरपा देगी। विडंबना देखिए कि खुद जूही ने भी यह रोल अस्वीकार कर दिया था। और अब जबकि परदे पर उनका अभिनय दिख रहा है तो बस एक ही सवाल जेहन में आता है, कहां छुपा रखा था जूही ने अभिनय का यह रंग!

मेरे जेहन में जूही के निभाए कई किरदार आ—जा रहे थे। ‘डर’, ‘इश्क’, ‘मिस्टर और मिसेज खिलाड़ी’ से लेकर ‘सलाम—ए—इश्क’ और ‘सन आफ सरदार’ तक। मगर जितने शानदार ढंग से उन्होंने एक करप्ट पॉलिटिशियन का रोल निभाया है, वह मुझे फिल्म ‘शूल’ के सैयाजी शिंदे का निभाए रोल के समकक्ष लगता है। वही क्रूरता, वही कपट, वही शातिरपन! चेहरे पर आती—जाती भावनाओं का वैसा ही ज्वार—भाटा!
फिल्म का वह दृश्य काबिल—ए—गौर है, जब स्थानीय नेता और अपने होने वाले रिश्तेदार के घर से जूही रिश्ता टूटने के बाद निकलती हैं। मन में गुस्सा है, चेहरे पर आक्रोश है, लेकिन तभी सामने भीड़ नजर आती है। एक मंझे हुए नेता की तरह वह अपने मन की भावनाएं दबाकर बड़ी आत्मीयता से मुस्कुराकर जनता का अभिवादन करती हैं। जनता माधुरी दीक्षित की जयजयकार करती है, लेकिन वह नाराजगी जाहिर नहीं करतीं, बल्कि हालात का मिजाज समझते हुए माधुरी से मेल बढ़ाने की कोशिश करती हैं। इसी तरह जब बागी नेता उनके घर के सामने शोर मचाता है तो उसे सबक सिखाने के लिए जो ‘रास्ता’ अख्तियार करती हैं, वह भी उनके किरदार के कपट की एक बानगी है।

अपने पति की मौत से मिलने वाले इंश्योरेंस क्लेम की चर्चा करते हुए उनके चेहरे के भावों को गौर कीजिएगा, या फिर चुनाव में जीत से पूर्व जब वह अपने पति की तस्वीर के सामने खड़ी होती हैं! हर फ्रेम में, हर सीन में, जहां भी जूही आई हैं, बस छा गई हैं। यहां तक कि माधुरी के साथ वाले फ्रेम में भी वह आगे नजर आती हैं।

यह फिल्म देखने के बाद मैं कह सकता हूं कि ‘गुलाब गैंग’ वहां से शुरू नहीं होती, जहां से यह शुरू होती है। बल्कि यह वहां से शुरू होती है जहां से जूही का किरदार शुरू होता है। उनके चेहरे पर भावनाओं का उतार—चढ़ाव, कपट का प्रदर्शन सबकुछ हैरान कर देता है। उनकी अभिनय क्षमता पर संदेह करना तो गुस्ताखी होगी, लेकिन जूही के इस रूप पर तो उनका कट्टर आलोचक भी फिदा हो जाएगा!

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन समोसे के साथ चटनी फ्री नहीं रही,ऐसे मे बैंक सेवाएँ फ्री कहाँ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. जूही चावला तो हर भूमिका में जान डाल देती है चाहे वह तीन दीवारें हो, यस बॉस हो, मिस्टर मिसेज हो या फिर कयामत से...। कोई आश्चर्य नही कि वह माधुरी से बीस हो ।

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