दीपक की बातें

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Wednesday, September 25, 2013

इंसानी फितरतों और फरेबों का लंचबॉक्स

अपनी तमाम खूबियों से इतर लंचबॉक्स इंसानी फितरतों और फरेबों का लेखा-जोखा भी खूब अच्छे से पेश करती है। इसके सभी पात्रों की एक सी ही फितरत है। वह कुछ न कुछ छुपा रहा होता है। चाहे साजन फर्नांडिस हो, इला हो या फिर असलम शेख। हर किसी के अपने दर्द हैं, गम हैं और परेशानियां भी हैं, लेकिन साथ ही साथ उनका एक झूठ भी है। एक छल, एक फरेब की दुनिया रचते हैं ये सभी।

इला
शुरुआत इला से ही कर लेते हैं। पति को मनाने की कोशिश में जायकेदार खाना बनाती हैं। पेट के रास्ते दिल तक पहुंचने का जरिया तलाशती है। टिफिन खाली वापस आता है तो इला खुश होती है, लेकिन रात होते-होते पता चल जाता है कि गलती से टिफिन किसी और के पास पहुंच गया था। दूसरे दिन वह टिफिन वाले को रोकती नहीं। एक खत लिखकर डिब्बे में डाल देती है। फिर एक सिलसिला।
हकीकत में पति की उपेक्षा से नाखुश इला अफसाने में खुशी ढूंढने लगती है। पति से छुपा ले जाती है कि टिफिन किसी और के पास जा रहा है।

इला का पति
शायद इसकी वजह भी वाजिब है। आखिर उसका पति भी तो झूठा ही है। उसने ही इला से कहां बताया है कि उसका किसी और से अफेयर चल रहा है। वह तो इला है जो उसके कपड़ों से किसी पराई स्त्री की गंध पा लेती है। शायद इसी के बाद उसका मनोबल और बढ़ जाता है। साजन के साथ उसके खतों का सिलसिला भी। पति का फरेब, इला को फरेबी हो जाने का हौसला दे दे देता है।

असलम शेख
एक और पात्र असलम शेख, वह भी तो फरेबी ही है। नकली दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पा लेता है। यहां भी जिसकी जगह लेनी है, उसका अटेंशन न मिलने पर खुद को अनाथ तक बता देता है। बाद में खुद ही अपनी अम्मी का जिक्र करके फंस भी जाता है। दावा करता है कि वह मेहनत करके अपने काम को पूरा सीखेगा, लेकिन गलतियों का अंबार खड़ा कर देता है।

साजन फर्नांडिस
और साजन फर्नांडिस, खुद से भागता है। दुनिया से भागता है। न किसी से मिलना न जुलना। तन्हाई का फरेब रच रखा है साजन ने। व्यक्तित्व के रूखेपन की खोल बनाकर उसमें खुद को छुपाना चाहता है। असलम को काम नहीं सिखाना चाहता। हालांकि उसकी पोल तब खुलती है, जब इला का खत उसके पास आता है। इसके बाद उसके व्यवहार में आते परिवर्तन साफ नजर आने लगते हैं। परतें खुलने लगती हैं। असलम के अनाथ होने की बात जानने के बाद वह उसके प्रति सहानुभूति से भर जाता है। उसे काम सिखाने लगता है। उसके साथ आने-जाने लगता है। अपने घर के पास खेलने वाले बच्चों से भी वह रुखाई से पेश आता है। असल में वह उनके पास जाना चाहता है, लेकिन वह खुद से खुल नहीं पाता। फरेब तो वह इला से भी करता है, जब उसे सहारे की जरूरत थी, दोस्त की जरूरत थी, उसे छोड़कर चला जाता है। वापस भी आता है तो तब, जब इस बात की गारंटी नहीं होती कि इला मिलेगी भी या नहीं।

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