बीबीसी, कई यादें जुडी हैं इस नाम के साथ। जब कल मुकुल सर के ज़रिये इस बात की जानकारी मिली कि बीबीसी हिंदी की एक सर्विस जारी रहेगी तो दिल को काफी तसल्ली मिली। हालाँकि संतोष तो तभी मिलेगा जब सभी सर्विस्सेस जारी होने की खुशखबरी मिलेगी।
खैर, जेहन में बीबीसी की कई बातें आज भी ताज़ा हैं। मैं छठी या सातवीं में पढता था। घर में बीबीसी खूब सुनी जाती थी। (अभी भी चाचा जी सुनते हैं ) शाम को साढ़े सात बजते ही रेडियो पर बीबीसी की सिंग्नेचर ट्यून बजती, और फिर आवाज आती, 'बीबीसी की तीसरी सभा में आपका स्वागत है, मैं मधुकर उपाध्याय, इस सभा .........पहले आप सुनिए अन्तराष्ट्रीय समाचार......और फिर जैसे ही समाचार ख़त्म होते, सिंग्नेचर ट्यून बजती और रेडियो से पहले मैं बोल उठता, 'आज कल' सच एक जूनून था। जैसे जैसे बड़ा होता गया ये जूनून एक मुकम्मल नशा बन गया। अचला शर्मा, रेहान फजल, ब्रजेश उपाध्याय, ममता गुप्ता, और भी कई नाम। मैं इन्हें सुनता और बाद में इनकी नक़ल करता। कहना गलत नहीं होगा कि पत्रकारिता में आने कि लगन यहीं से लगी....
ये तो बीते दिनों कि यादें है। अब तो कभी कभी ही बीबीसी सुन पता हूँ, मिस तो करता ही हूँ........
@ये तो बीते दिनों कि यादें है...
ReplyDeletebadhiya post.