दीपक की बातें

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Saturday, February 13, 2010

हाए हाए ये वैलेन्ताईन


बड़ा शोर है वैलेन्ताईन का इन दिनों। जिसे देखो इश्क इश्क की रट लगाये बैठा है। पर मुझे इसपर जरा ओब्जेक्शन है भाई। आप भी सोच रहे होंगे क्यों भला? अरे साहब यह तो मुए पश्चिम वालों की देन है। वरना अपने देश में भला कहीं ऐसा होता है। अरे अपने लिए तो हर दिन मोहब्बत का है। हर दिन तकरार, हर दिन इकरार। पड़ोस वाले भाई साहब को देखता हूँ। हर दिन सुबह मियां बीवी में जमकर लड़ाई होती है। ऐसा लगता है की मानो एक दूसरे की जन ही ले लेंगे। लेकिन शाम होते ही नज़ारा बदला सा नज़र आना लगता है। पडोसी को आने में जरा सी देर होने लगी की उनकी पत्नी की तो मानो जान ही निकल जाती है। देखकर यकीन नहीं होता की सुबह येही मोहतरमा अपने पति के खून की प्यासी थी।

ऐसा ही होता है। अपना इंडियन प्यार। कोई दिखावट नहीं। कोई बनावट नहीं। अब यह बात आज के लौंडों को कौन समझाए। गर्लफ्रेंड, गिफ्ट, प्यार, इजहार बस बेचारे इसी में बर्बाद हुए जा रहे है। और इतना ही नहीं। एक एक लड़के की पांच पांच गर्लफ्रेंड है। हो सकता है ये आंकड़ा और भी बड़ा हो। येही हाल लड़कियों के भी है। मेरे दोस्त का एक भाई है । एक दिन सुबह पार्क में मिल गया। साथ में एक लड़की भी थी। मुझे देखकर बोला भैया, मेरी दोस्त है। शाम को फिर मिला एक रेस्टोरेंट में। इस बार दूसरी लड़की साथ थी। बोला भैया दोस्त है। मैं चक्कर खाकर गिरते गिरते बचा। ये तो हाल है साहब। किसे समझायेंगे और कैसे? अब मैं सोच रहा हूँ की वैलेन्ताईन वाले दिन वह लड़का किस लड़की के साथ होगा।

इश्क के लिए दिन और तारीख मुक़र्रर करना हमारे कल्चर में नहीं है। हम तो हर दिन प्यार बाटने और उसे एन्जॉय करने में ही यकीन करते है। आपका क्या ख्याल है?

3 comments:

  1. क्या खूब कहा है भाई आपने , एक दम सही ।

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  2. अच्छी बात...हमें बसंत और फागुन भूलकर वेलेंटाईन का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए.

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  3. बढ़िया लिखा है,बधाई.

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