

आउट होने को कौन बल्लेबाज आउट नहीं होता, मगर जिस तरह राहुल द्रविड़ हैरिस की गेंद पर लडख़ड़ाए वह शुभ संकेत नहीं है। गेंदबाज उनकी तकनीक लगातार सेंध लगाते जा रहे हैं। एक के बाद एक द्रविड़ बोल्ड होते जा रहे हैं। लक्ष्मण जम नहीं पा रहे हैं, सहवाग धमाका नहीं कर पा रहे हैं। हार बुरी नहीं लगती, आत्मसमर्पण बुरा लगता है। और विदेश में पिछले सात टेस्ट मैचों से यह सिलसिला चल रहा है। यंू तो खेल में हार जीत लगी रहती है। खेलभावना भी यही कहती है कि हार का मातम नहीं मनाया जाना चाहिए, लेकिन गलतियों पर गौर करना ही होगा। अगर जीतने के बाद हमारी आरती उतारी जाती है, हार के बाद मर्सिया भी होगा।
हार के बाद कप्तान धोनी को गम मनाना भले ना गवारा हो, मगर आत्ममंथन तो करना ही पड़ेगा। इस सवाल का जवाब तो ढूंढना ही पड़ेगा कि आखिर क्या वजह रही कि जो टीम कुछ दिन पहले टेस्ट में नंबर वन थी, वह लुढ़कती जा रही है। विदेश में पहले भी मात मिली है, मगर पहले कभी इस तरह नंगा नहीं किया गया। कई बार हम जूझते हुए हारे, लेकिन इस बार तो जुझारूपन नाम की कोई चीज नहीं थी। यूं बिना लड़े हार जाना वीरों को शोभा नहीं देता।