4 स्टार
कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो प्रासंगिकता के लिहाज से समय की सीमा से परे होते हैं। एक ऐसी ही शख्सियत थे शाहिद आजमी। मात्र 32 साल की उम्र में उस शख्स ने जिंदगी के कई रंग देख लिए थे। पेशे से वकील शाहिद की 2010 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनकी जिंदगी को परदे पर लेकर आए हैं हंसल मेहता, फिल्म 'शाहिद' में। कई फिल्म समारोहों में धूम मचाने और तारीफें बटोरने के बाद यह फिल्म अब सिनेमाघरों में लग चुकी है। फिल्म देखकर अहसास होता है कि हमें अभी और 'शाहिद' की जरूरत है, न सिर्फ फिल्म के तौर पर, बल्कि समाज में एक शख्सियत के तौर पर भी।
'शाहिद' कहानी है एक युवा की, जो आतंकवाद के झूठे मुकदमे में फंसे लोगों के केस लड़ता है। वजह, उसने खुद आतंकवादी होने के झूठ का दर्द भुगता है। नाजुक सी उम्र में वह आतंकियों के हत्थे चढ़ जाता है। कश्मीर में उसे आतंकी शिविर में ट्रेनिंग दी जाती है। वहां से किसी तरह भागकर वह मुंबई अपने घर पहुंचता है। घरवाले खुश हो जाते हैं, लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं होता कि शाहिद का आना खुशी नहीं, मुसीबत का पैगाम है। आगे की कहानी शाहिद के ऊपर आतंकी होने के इल्जाम, उसकी सजा और फिर आतंक के झूठे मुकदमे में फंसे लोगों को छुड़ाने की मुहिम की है।
निर्देशक हंसल मेहता ने बहुत बारीक छानबीन के बाद शाहिद फिल्म बनाई है। वह पूरी तरह से बधाई के पात्र हैं। किसी की जिंदगी को परदे पर उतारना बेहद कठिन होता है, लेकिन शाहिद इस मामले में लाजवाब है। दृश्यों की बुनावट और उन्हें पेश करने का अंदाज उम्दा है। जेल के दृश्य, कोर्ट रूम के दृश्य, शाहिद के संघर्ष के दृश्य, सभी बेहद खूबसूरती से उभरे हैं। कैमरा एंगल के साथ भी सफल प्रयोग किए गए हैं। शाहिद की निजी जिंदगी के दोहरावों को भी बखूबी दर्शाया गया है।
राजकुमार यादव ने अभिनय की नई रेंज बना डाली है। वह शाहिद के रोल में पूरी तरह छा गए हैं। छोटी-छोटी भूमिकाओं में केके मेनन, तिग्मांशु धूलिया भी अपना असर डालते हैं। शाहिद की मां की भूमिका में बलजिंदर कौर, शाहिद के भाई बने मोहम्मद जीशान अयूब और उनकी पत्नी का रोल करने वाली प्रभलीन संधू, इस फिल्म के निहायत जरूरी हिस्से की तरह हैं।
आतंकवाद ने पूरी दुनिया को न भुलाने वाले जख्म दिए हैं। इसी के साथ इसने उन परिवारों को भी पीड़ा दी है, जिनके बच्चे आतंकवादी होने के झूठे मुकदमों में फंसा दिया गया। आज भी ऐसे बहुत से मामले मिल जाएंगे। बहरहाल, इस लाजवाब फिल्म को देखना तो बनता है भाई!
कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो प्रासंगिकता के लिहाज से समय की सीमा से परे होते हैं। एक ऐसी ही शख्सियत थे शाहिद आजमी। मात्र 32 साल की उम्र में उस शख्स ने जिंदगी के कई रंग देख लिए थे। पेशे से वकील शाहिद की 2010 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनकी जिंदगी को परदे पर लेकर आए हैं हंसल मेहता, फिल्म 'शाहिद' में। कई फिल्म समारोहों में धूम मचाने और तारीफें बटोरने के बाद यह फिल्म अब सिनेमाघरों में लग चुकी है। फिल्म देखकर अहसास होता है कि हमें अभी और 'शाहिद' की जरूरत है, न सिर्फ फिल्म के तौर पर, बल्कि समाज में एक शख्सियत के तौर पर भी।
'शाहिद' कहानी है एक युवा की, जो आतंकवाद के झूठे मुकदमे में फंसे लोगों के केस लड़ता है। वजह, उसने खुद आतंकवादी होने के झूठ का दर्द भुगता है। नाजुक सी उम्र में वह आतंकियों के हत्थे चढ़ जाता है। कश्मीर में उसे आतंकी शिविर में ट्रेनिंग दी जाती है। वहां से किसी तरह भागकर वह मुंबई अपने घर पहुंचता है। घरवाले खुश हो जाते हैं, लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं होता कि शाहिद का आना खुशी नहीं, मुसीबत का पैगाम है। आगे की कहानी शाहिद के ऊपर आतंकी होने के इल्जाम, उसकी सजा और फिर आतंक के झूठे मुकदमे में फंसे लोगों को छुड़ाने की मुहिम की है।
निर्देशक हंसल मेहता ने बहुत बारीक छानबीन के बाद शाहिद फिल्म बनाई है। वह पूरी तरह से बधाई के पात्र हैं। किसी की जिंदगी को परदे पर उतारना बेहद कठिन होता है, लेकिन शाहिद इस मामले में लाजवाब है। दृश्यों की बुनावट और उन्हें पेश करने का अंदाज उम्दा है। जेल के दृश्य, कोर्ट रूम के दृश्य, शाहिद के संघर्ष के दृश्य, सभी बेहद खूबसूरती से उभरे हैं। कैमरा एंगल के साथ भी सफल प्रयोग किए गए हैं। शाहिद की निजी जिंदगी के दोहरावों को भी बखूबी दर्शाया गया है।
राजकुमार यादव ने अभिनय की नई रेंज बना डाली है। वह शाहिद के रोल में पूरी तरह छा गए हैं। छोटी-छोटी भूमिकाओं में केके मेनन, तिग्मांशु धूलिया भी अपना असर डालते हैं। शाहिद की मां की भूमिका में बलजिंदर कौर, शाहिद के भाई बने मोहम्मद जीशान अयूब और उनकी पत्नी का रोल करने वाली प्रभलीन संधू, इस फिल्म के निहायत जरूरी हिस्से की तरह हैं।
आतंकवाद ने पूरी दुनिया को न भुलाने वाले जख्म दिए हैं। इसी के साथ इसने उन परिवारों को भी पीड़ा दी है, जिनके बच्चे आतंकवादी होने के झूठे मुकदमों में फंसा दिया गया। आज भी ऐसे बहुत से मामले मिल जाएंगे। बहरहाल, इस लाजवाब फिल्म को देखना तो बनता है भाई!
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