3 स्टार
हर किसी की दिलचस्पी होती है कि आखिर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर क्या होता होगा? अभी तक कई फिल्मों में सीमा के हालात दिखाए गए हैं। अब लेखक-निर्देशक फराज हैदर इसी हालात को 'वॉर छोड़ ना यार' फिल्म में नए अंदाज में लेकर आए हैं। सीमा पर जवान, दोनों देशों की राजनीति, विदेशी हस्तक्षेप और मीडिया के रोल में कॉमेडी का तड़का लगाकर फराज ने काफी अच्छी कोशिश की है।
फिल्म में दिखाया गया है कि एक तरफ दोनों देशों की सियासत हमेशा यह दिखाने की कोशिश करती रहती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बेहद पेचीदा हैं। वहीं सीमा पर दोनों देशों के जवान एक दूसरे के साथ अंत्याक्षरी खेलने और हंसी-मजाक में लगे रहते हैं। दोनों देशों के बीच तनाव का फायदा उठाकर अमेरिका और चीन इनमें युद्ध करवाना चाहते हैं।
फिल्म की कहानी और विषय में ताजगी है। हालांकि फराज अपनी यही काबिलियत निर्देशन में नहीं दोहरा पाते। फिल्म में कुछ दृश्य तो हंसी से भरपूर हैं, लेकिन कुछ जगहों पर कसावट की कमी साफ महसूस होती है। फिल्म में चीनी पदार्थों के बायकॉट का सीन जोडऩे का कोई तुक समझ नहीं आता। यह सिर्फ फिल्म की दिशा भटकाता है।
हालांकि उन्हें शुक्रगुजार होना चाहिए अपने अभिनेताओं का। भारतीय सेना के कैप्टन राज की भूमिका शरमन जोशी ने बेहद अच्छे से निभाई है। वहीं पाकिस्तानी आर्मी के कैप्टन कुरैशी के रोल में जावेद जाफरी भी अच्छे रहे हैं। दलीप ताहिल ने फिल्म में तिहरा रोल किया है। हालांकि सब पर भारी हैं पाकिस्तानी कमांडर बने संजय मिश्रा। वह जिस भी सीन में आते हैं छा जाते हैं। जर्नलिस्ट के रोल में सोहा अली खान भी ठीक हैं।
फिल्म में हास्य की फुहार तो है ही, साथ ही व्यंग्य का करारा वार भी किया गया है। पाकिस्तानी सिपाहियों में खाने को लेकर होने वाली तकरार, उन्हें मिलने वाले चीनी हथियारों का मौके पर फेल हो जाना, चीन और अमेरिका की बेवजह दखअंदाजी और दोनों देशों की कमजोर सियासत पर खूब चुटकी ली गई है। गीत और संगीत की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी और न ही यह प्रभावी हैं। फिल्म के डायलॉग थोड़े और क्रिस्पी होते तो मजा बढ़ जाता।
(
न्यूज़ टुडे में प्रकाशित)
हर किसी की दिलचस्पी होती है कि आखिर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर क्या होता होगा? अभी तक कई फिल्मों में सीमा के हालात दिखाए गए हैं। अब लेखक-निर्देशक फराज हैदर इसी हालात को 'वॉर छोड़ ना यार' फिल्म में नए अंदाज में लेकर आए हैं। सीमा पर जवान, दोनों देशों की राजनीति, विदेशी हस्तक्षेप और मीडिया के रोल में कॉमेडी का तड़का लगाकर फराज ने काफी अच्छी कोशिश की है।
फिल्म में दिखाया गया है कि एक तरफ दोनों देशों की सियासत हमेशा यह दिखाने की कोशिश करती रहती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बेहद पेचीदा हैं। वहीं सीमा पर दोनों देशों के जवान एक दूसरे के साथ अंत्याक्षरी खेलने और हंसी-मजाक में लगे रहते हैं। दोनों देशों के बीच तनाव का फायदा उठाकर अमेरिका और चीन इनमें युद्ध करवाना चाहते हैं।
फिल्म की कहानी और विषय में ताजगी है। हालांकि फराज अपनी यही काबिलियत निर्देशन में नहीं दोहरा पाते। फिल्म में कुछ दृश्य तो हंसी से भरपूर हैं, लेकिन कुछ जगहों पर कसावट की कमी साफ महसूस होती है। फिल्म में चीनी पदार्थों के बायकॉट का सीन जोडऩे का कोई तुक समझ नहीं आता। यह सिर्फ फिल्म की दिशा भटकाता है।
हालांकि उन्हें शुक्रगुजार होना चाहिए अपने अभिनेताओं का। भारतीय सेना के कैप्टन राज की भूमिका शरमन जोशी ने बेहद अच्छे से निभाई है। वहीं पाकिस्तानी आर्मी के कैप्टन कुरैशी के रोल में जावेद जाफरी भी अच्छे रहे हैं। दलीप ताहिल ने फिल्म में तिहरा रोल किया है। हालांकि सब पर भारी हैं पाकिस्तानी कमांडर बने संजय मिश्रा। वह जिस भी सीन में आते हैं छा जाते हैं। जर्नलिस्ट के रोल में सोहा अली खान भी ठीक हैं।
फिल्म में हास्य की फुहार तो है ही, साथ ही व्यंग्य का करारा वार भी किया गया है। पाकिस्तानी सिपाहियों में खाने को लेकर होने वाली तकरार, उन्हें मिलने वाले चीनी हथियारों का मौके पर फेल हो जाना, चीन और अमेरिका की बेवजह दखअंदाजी और दोनों देशों की कमजोर सियासत पर खूब चुटकी ली गई है। गीत और संगीत की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी और न ही यह प्रभावी हैं। फिल्म के डायलॉग थोड़े और क्रिस्पी होते तो मजा बढ़ जाता।
(
न्यूज़ टुडे में प्रकाशित)
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