3 स्टार
पिछले कुछ वक्त में कंगना रानाउत ने अपना एक अलग मुकाम बनाया है। उन्होंने रिस्क उठाया है, अलग रोल चुने हैं और उसका फायदा भी उन्हें मिला है। कृष और क्वीन की बेशुमार सफलता के बाद अब कंगना पर्दे पर रिवॉल्वर रानी बनकर उतरी हैं। फिल्म की कहानी है चंबल की रहने वाली अलका सिंह (कंगना रानाउत) की। अलका को उसके मां-बाप की मौत के बाद बल्ली मामा (पीयूष मिश्रा) ने पाला है। अलका सिंह गोली-बंदूकों के बीच पली-बढ़ी है। शादी होने के बाद वह उसका पति बेवफा निकलता है और अलका उसे गोलियों से भून देती है। अलका चुनाव में खड़ी होती है, लेकिन भ्रष्ट नेता उदयभान उर्फ भानु सिंह (जाकिर हुसैन) से हार जाती है। इससे तिलमिलाई अलका बदला लेना चाहती है, मगर इसी बीच उसे स्ट्रगलिंग एक्टर रोहन (वीर दास) से प्यार हो जाता है। अब इन सबके बीच अलका क्या करती है, यही फिल्म में दिखाया गया है।
पहले कुछ अच्छी बातें
फिल्म की अच्छी बातों में सबसे पहले नंबर आता है कंगना की एक्टिंग का। कंगना ने एक बार फिर साबित किया है कि हटके रोल करने में भी उनका कोई मुकाबला नहीं है। अगर देखा जाए तो फिल्म एक ब्लैक कॉमेडी है। भ्रष्ट मंत्री के भाइयों हरकतें करते हैं, कंगना की कॉमिक टाइमिंग, अंग्रेजी में इंटरव्यू, वीर दास का अंदाज और जिस तरह से समाचार चैनल पर खबर पढ़ी जाती है, सब इसे मजेदार बनाते हैं। इसी तरह कंगना के ड्रेस सेलेक्शन वाला सीन भी फनी है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है। वहीं क्लाइमेक्स भी जोरदार है।
एक्टिंग भी फिल्म का सशक्त पहलू है। पीयूष मिश्रा हों, वीर दास या फिर जाकिर हुसैन सबने अपना रोल ढंग से निभाया है। छोटी-छोटी भूमिकाओं में सईद जीशान कादरी, डीना उप्पल और निकुंज मलिक ने भी प्रभावित किया है।
अब कमजोरियां
फिल्म की शुरुआत बहुत थकाऊ है। पहले 15 मिनट तक कुछ समझ में नहीं आता है। वहीं स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है। अक्सर कहानी में तारतम्य नहीं बैठता है। अलका की दास्तान को और गहराई से बयां करने की जरूरत थी, ताकि लोग उससे जुड़ पाते। अलका का अपने मामा से मतभेद क्यूं है, यह बात जस्टीफाई नहीं हो पाती। पहला हॉफ भी बहुत इंप्रेसिव नहीं है। कुछ सीन बहुत ज्यादा बोल्ड हैं। गोलियां और गालियां भी थोक के भाव में हैं। हालांकि फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट मिला है, लेकिन फिर भी फैमिली इसे अवॉयड ही करेगी।
फाइनल पंच
कंगना की एक और यादगार परफॉर्मेंस, लेकिन फैमिली क्लास न होना इसके रास्ते की बाधा बनेगी। फिल्म में भिंड-मुरैना की भाषा का टच है, जो कि लोकल लोगों को इससे जोड़ेगा। अगर आप कंगना के फैन हैं, तो एक बार फिल्म देखना तो बनता है।
पिछले कुछ वक्त में कंगना रानाउत ने अपना एक अलग मुकाम बनाया है। उन्होंने रिस्क उठाया है, अलग रोल चुने हैं और उसका फायदा भी उन्हें मिला है। कृष और क्वीन की बेशुमार सफलता के बाद अब कंगना पर्दे पर रिवॉल्वर रानी बनकर उतरी हैं। फिल्म की कहानी है चंबल की रहने वाली अलका सिंह (कंगना रानाउत) की। अलका को उसके मां-बाप की मौत के बाद बल्ली मामा (पीयूष मिश्रा) ने पाला है। अलका सिंह गोली-बंदूकों के बीच पली-बढ़ी है। शादी होने के बाद वह उसका पति बेवफा निकलता है और अलका उसे गोलियों से भून देती है। अलका चुनाव में खड़ी होती है, लेकिन भ्रष्ट नेता उदयभान उर्फ भानु सिंह (जाकिर हुसैन) से हार जाती है। इससे तिलमिलाई अलका बदला लेना चाहती है, मगर इसी बीच उसे स्ट्रगलिंग एक्टर रोहन (वीर दास) से प्यार हो जाता है। अब इन सबके बीच अलका क्या करती है, यही फिल्म में दिखाया गया है।
पहले कुछ अच्छी बातें
फिल्म की अच्छी बातों में सबसे पहले नंबर आता है कंगना की एक्टिंग का। कंगना ने एक बार फिर साबित किया है कि हटके रोल करने में भी उनका कोई मुकाबला नहीं है। अगर देखा जाए तो फिल्म एक ब्लैक कॉमेडी है। भ्रष्ट मंत्री के भाइयों हरकतें करते हैं, कंगना की कॉमिक टाइमिंग, अंग्रेजी में इंटरव्यू, वीर दास का अंदाज और जिस तरह से समाचार चैनल पर खबर पढ़ी जाती है, सब इसे मजेदार बनाते हैं। इसी तरह कंगना के ड्रेस सेलेक्शन वाला सीन भी फनी है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है। वहीं क्लाइमेक्स भी जोरदार है।
एक्टिंग भी फिल्म का सशक्त पहलू है। पीयूष मिश्रा हों, वीर दास या फिर जाकिर हुसैन सबने अपना रोल ढंग से निभाया है। छोटी-छोटी भूमिकाओं में सईद जीशान कादरी, डीना उप्पल और निकुंज मलिक ने भी प्रभावित किया है।
अब कमजोरियां
फिल्म की शुरुआत बहुत थकाऊ है। पहले 15 मिनट तक कुछ समझ में नहीं आता है। वहीं स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है। अक्सर कहानी में तारतम्य नहीं बैठता है। अलका की दास्तान को और गहराई से बयां करने की जरूरत थी, ताकि लोग उससे जुड़ पाते। अलका का अपने मामा से मतभेद क्यूं है, यह बात जस्टीफाई नहीं हो पाती। पहला हॉफ भी बहुत इंप्रेसिव नहीं है। कुछ सीन बहुत ज्यादा बोल्ड हैं। गोलियां और गालियां भी थोक के भाव में हैं। हालांकि फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट मिला है, लेकिन फिर भी फैमिली इसे अवॉयड ही करेगी।
फाइनल पंच
कंगना की एक और यादगार परफॉर्मेंस, लेकिन फैमिली क्लास न होना इसके रास्ते की बाधा बनेगी। फिल्म में भिंड-मुरैना की भाषा का टच है, जो कि लोकल लोगों को इससे जोड़ेगा। अगर आप कंगना के फैन हैं, तो एक बार फिल्म देखना तो बनता है।
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