तीन स्टार
पूरे देश में चुनावी माहौल है और फर्ज कीजिए कि इसी बीच एक भूत आए और अपना नॉमिनेशन फाइल कर दे? जी हां, यही कहानी है इस शुक्रवार रिलीज हुई फिल्म 'भूतनाथ रिटन् र्स' की। भूतनाथ (अमिताभ बच्चन) जब वापस भूतलैंड पहुंचता है तो लोग उसके ऊपर हंसते हैं, कि वह एक बच्चे तक को डरा नहीं पाया। इधर दोबारा जन्म लेने के लिए भी लंबी वेटिंग है। इस बीच उसे मौका मिलता है कि वह दोबारा धरती पर जाए और लोगों का डराकर भूतों का सम्मान वापस दिलाए। भूतनाथ लौटकर धरती पर आता है तो उसे यहां अखरोट (पार्थ भालेराव) मिल जाता है जो उसे देख सकता है। अब भूतनाथ का सामना होता है यहां के हालात और मुश्किलों से। स्थानीय विधायक भाऊ (बोमन ईरानी) ने अपने बाहुबल के दम पर जबर्दस्त भ्रष्टाचार फैला रखा है। हालात एेसे बनते हैं कि भूतनाथ को भाऊ के खिलाफ चुनाव लडऩा पड़ता है। आगे की कहानी कई जबर्दस्त उतार-चढ़ाव से भरी है, जिसमें गंभीर बातें तो हैं ही, हास्य की फुहार भी खूब है।
पहला हॉफ जबर्दस्त
पहले हॉफ में फिल्म जबर्दस्त है। यहां पर एक-एक सीन बढि़या है। कहानी, अभिनय और डायलॉग से लेकर सिनेमैटोग्राफी तक। निर्देशक ने इतने शानदार ढंग से प्लॉट को बुना है कि कपोल कल्पना लगने वाली कहानी भी सच्ची लगने लगती है। इसके साथ ही फिल्म में महंगाई, करप्शन और सरकारी कर्मचारियों की कामचोरी पर गहरे ढंग से कटाक्ष किया गया है। इसे और भी सजीव बना देते हैं अमिताभ बच्चन, पार्थ, बोमन ईरानी और संजय मिश्रा। इन सभी ने अपने अभिनय और डायलॉग डिलीवरी का शानदार नमूना पेश किया है। मगर रुकिए मैंने अभी तक सिर्फ फस्र्ट हॉफ की बात की है। दूसरा हॉफ इतना मजेदार नहीं है। यह जबर्दस्ती खींचा गया सा लगता है।
बढि़या एक्टिंग और डायलॉग
फिल्म में सभी कलाकारों ने बढि़या एक्टिंग की है। अमिताभ तो हैं ही, लेकिन तारीफ करनी होगी पार्थ की। कई जगहों पर उन्होंने अमिताभ को भी पसीने छुड़ा दिए हैं। इसके बाद बारी आती है बोमन ईरानी की। एक बाहुबली नेता के रोल में उन्होंने जान डाल दी है। वहीं संजय मिश्रा ने भी गुदगुदाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बाकी भूमिकाओं में ऊषा जाधव और ब्रजेंद्र काला ने भी अपनी भूमिका ढंग से निभाई है।
फिल्म के डायलॉग भी काफी क्रिस्पी हैं। खास बात यह है कि डायलॉग्स को बाजारू बनाने के बजाए उनमें ह्यूमर का विटी पुट डाला गया है। सिनेमैटोग्राफी बढि़या है, लेकिन गाने इतने खास नहीं हैं।
फाइनल पंच
चुनाव के मौसम में फिल्म एक बार देखनी तो बनती है। कहने को तो फिल्म बच्चों की है, लेकिन 'वोट दें जरूर, चाहे किसी को भी दें' का मैसेज खास गंभीर है।
पूरे देश में चुनावी माहौल है और फर्ज कीजिए कि इसी बीच एक भूत आए और अपना नॉमिनेशन फाइल कर दे? जी हां, यही कहानी है इस शुक्रवार रिलीज हुई फिल्म 'भूतनाथ रिटन् र्स' की। भूतनाथ (अमिताभ बच्चन) जब वापस भूतलैंड पहुंचता है तो लोग उसके ऊपर हंसते हैं, कि वह एक बच्चे तक को डरा नहीं पाया। इधर दोबारा जन्म लेने के लिए भी लंबी वेटिंग है। इस बीच उसे मौका मिलता है कि वह दोबारा धरती पर जाए और लोगों का डराकर भूतों का सम्मान वापस दिलाए। भूतनाथ लौटकर धरती पर आता है तो उसे यहां अखरोट (पार्थ भालेराव) मिल जाता है जो उसे देख सकता है। अब भूतनाथ का सामना होता है यहां के हालात और मुश्किलों से। स्थानीय विधायक भाऊ (बोमन ईरानी) ने अपने बाहुबल के दम पर जबर्दस्त भ्रष्टाचार फैला रखा है। हालात एेसे बनते हैं कि भूतनाथ को भाऊ के खिलाफ चुनाव लडऩा पड़ता है। आगे की कहानी कई जबर्दस्त उतार-चढ़ाव से भरी है, जिसमें गंभीर बातें तो हैं ही, हास्य की फुहार भी खूब है।
पहला हॉफ जबर्दस्त
पहले हॉफ में फिल्म जबर्दस्त है। यहां पर एक-एक सीन बढि़या है। कहानी, अभिनय और डायलॉग से लेकर सिनेमैटोग्राफी तक। निर्देशक ने इतने शानदार ढंग से प्लॉट को बुना है कि कपोल कल्पना लगने वाली कहानी भी सच्ची लगने लगती है। इसके साथ ही फिल्म में महंगाई, करप्शन और सरकारी कर्मचारियों की कामचोरी पर गहरे ढंग से कटाक्ष किया गया है। इसे और भी सजीव बना देते हैं अमिताभ बच्चन, पार्थ, बोमन ईरानी और संजय मिश्रा। इन सभी ने अपने अभिनय और डायलॉग डिलीवरी का शानदार नमूना पेश किया है। मगर रुकिए मैंने अभी तक सिर्फ फस्र्ट हॉफ की बात की है। दूसरा हॉफ इतना मजेदार नहीं है। यह जबर्दस्ती खींचा गया सा लगता है।
बढि़या एक्टिंग और डायलॉग
फिल्म में सभी कलाकारों ने बढि़या एक्टिंग की है। अमिताभ तो हैं ही, लेकिन तारीफ करनी होगी पार्थ की। कई जगहों पर उन्होंने अमिताभ को भी पसीने छुड़ा दिए हैं। इसके बाद बारी आती है बोमन ईरानी की। एक बाहुबली नेता के रोल में उन्होंने जान डाल दी है। वहीं संजय मिश्रा ने भी गुदगुदाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बाकी भूमिकाओं में ऊषा जाधव और ब्रजेंद्र काला ने भी अपनी भूमिका ढंग से निभाई है।
फिल्म के डायलॉग भी काफी क्रिस्पी हैं। खास बात यह है कि डायलॉग्स को बाजारू बनाने के बजाए उनमें ह्यूमर का विटी पुट डाला गया है। सिनेमैटोग्राफी बढि़या है, लेकिन गाने इतने खास नहीं हैं।
फाइनल पंच
चुनाव के मौसम में फिल्म एक बार देखनी तो बनती है। कहने को तो फिल्म बच्चों की है, लेकिन 'वोट दें जरूर, चाहे किसी को भी दें' का मैसेज खास गंभीर है।
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