3 स्टार
आमतौर पर हम सभी फिल्में देखते हैं। सिनेमा हॉल में मनोरंजन के नाम पर हीरो-हिरोइन की ऊटपटांग हरकतें, बेसिर-पैर की कहानियों, अतार्किक रीमेक और अतिरेकता से भरी फिल्में झेलते रहते हैं। मगर जब 'मिस लवली' जैसी कोई फिल्म उसी ग्लैमर वल्र्ड के चमकदार परदे को चिंदी-चिंदी उड़ाती है तो हम उसे देखने से कतराते हैं। सिर्फ 12 दर्शकों के बीच बैठकर 'मिस लवली' फिल्म को देखते हुए बार-बार यही ख्याल जेहन में आ रहा था।
असल में 'मिस लवली' आंखें खोलने वाली फिल्म है। 80 के दशक में जब फिल्में चलनी कम हो गईं तो किस तरह से निर्माता-निर्देशकों और वितरकों ने पैसे कमाने का शॉर्ट-कट निकाला, उसे बखूबी दिखाया गया है। उस दौरान बी और सी ग्रेड की फिल्में बनाकर, उसके बीच सॉफ्ट पॉर्न और सेमी-पॉर्न फिल्मों के दृश्य भरकर दर्शकों के सामने परोसे गए। इसी रंगीन दुनिया की स्यास सच्चाईयों को निर्देशक अशीम अहलूवालिया ने बड़े बेबाकी से परदे पर उतारा है।
सच का आईना
फिल्म दो भाईयों विकी दुग्गल (अनिल जॉर्ज) और सोनू दुग्गल (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) पर आधारित हैं। यह दोनों सी ग्रेड फिल्मों के कारोबार में लगे हुए हैं। सोनू इससे दूर भागना चाहता है, लेकिन परिस्थितियोंवश वह इसमें घिरता चला जाता है। इसी बीच उसकी मुलाकात पिंकी (निहारिका सिंह) से होती है। सोनू पिंकी से प्यार करने लगता है और उसे लेकर 'मिस लवली' नाम की फिल्म बनाना चाहता है।
फिल्म में सी-ग्रेड इंडस्ट्री की अंदरूनी सच्चाईयों को बड़ी बारीकी से दिखाया गया है। किस तरह यहां लोगों का इस्तेमाल होता है। फिल्मों की चमक-दमक के अंदर कितनी गंदगी और सड़ांध है, इसे भी दिखाया गया है। इन सबके साथ प्यार, धोखा, रिश्ते-नातों की पोल भी खोली गई है।
लाजवाब
निर्देशन शानदार है। असलियत बरकरार रखने के लिए कुछ बी और सी ग्रेड की फिल्मों के दृश्यों का भी इस्तेमाल किया गया है। हालांकि फिल्म में इन्हें धुंधला कर दिया गया है। कैमरावर्क बहुत बढि़या है और लाइटिंग, फिल्म के मूड के हिसाब से है।
फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दिकी समेत सभी कलाकारों ने उम्दा काम किया है। अनिल जॉर्ज और निहारिका सिंह हालांकि कम जाने-पहचाने चेहरे हैं, लेकिन वह अपने काम से प्रभावित करते हैं।
फाइनल पंच
अगर आपको अलग तरह का सिनेमा देखना पसंद है तो 'मिस लवली' आपके लिए मस्ट वॉच है। बाकी ए कैटेगरी की फिल्म है तो फैमिली ले जाने का सवाल ही नहीं उठता।
No comments:
Post a Comment