1 स्टार
फिल्म 'जैकपॉट' पहले ही घंटे में फिल्म इतना पकाती है कि कई दर्शक सिनेमाहॉल छोड़कर निकल जाते हैं। अफसोस, अपन तो यह भी नहीं कर सकते थे, वर्ना यह यह रिव्यू कौन लिखता? फिल्म देखते हुए लगता है निर्देशक कैजाद गुस्ताद यह भूल गए थे कि मनोरंजन नाम की भी कोई चीज होती है। थ्रिलर और सस्पेंस फिल्म होने का दावा करने वाली जैकपॉट किसी धारावाहिक का नीरस एपिसोड लगता है, बल्कि वह भी इससे ज्यादा मनोरंजक हो सकता है।
फिल्म की कहानी है बॉस (नसीरुद्दीन शाह) की। वह गोवा में एक कसीनो का मालिक है। बॉस फ्रांसिस (सचिन जोशी), माया (सनी लियोनी), एंथनी (भरत निवास) और कीर्ति (एल्विस) के साथ अपने ही कसीनो में गलत ढंग से पांच करोड़ रुपए का जैकपॉट जीते की साजिश रचता है। बाद में इसी साजिश में साजिशों का सिलसिला चल पड़ता है और सब एक-दूसरे पर शक करने लगते हैं।
निर्देशक और लेखक कैजाद गुस्ताद ने क्या सोचकर यह फिल्म बनाई, कुछ समझ में नहीं आता। शुरू से ही फिल्म में झोल ही झोल हैं। स्क्रिप्ट इतनी उलझी हुई है कि दर्शक लगातार कंफ्यूज रहते हैं। समझ में ही नहीं आता कि कहानी किस दिशा में जा रही है। फिल्म में इतने ज्यादा फ्लैशबैक हैं कि दर्शक फिल्म से जुड़ ही नहीं पाता। कोई भी प्लॉट दर्शकों को न तो चौंका पाता है और न ही हैरान करता है।
फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है। यह लालच, धोखाधड़ी और दोस्ती में दगाबाजी के पुराने फॉर्मूलों पर आधारित है। इस तरह की कहानी पर हम जाने कितनी फिल्में देख चुके हैं।
फिल्म में थोड़ा बहुत जो अभिनय नजर आता है, वह नसीरुद््दीन शाह की बदौलत है। बाकी सनी लियोनी क्यों बॉलीवुड फिल्मों में आ गईं, ये तो वही जानें। उनसे अभिनय की कोई उम्मीद नहीं थी और वह कोई उम्मीद जगाती भी नहीं। हां, जिस्म की नुमाइश में कसर बाकी नहीं रखतीं। सचिन जोशी और अन्य कलाकार भी कुछ खास नहीं कर पाए हैं।
फिल्म का यही एक पक्ष है जो थोड़ा बेहतर है। खासतौर पर अरिजीत सिंह की आवाज में कभी जो बादल बरसे गाना कानों को सुकून दे जाता है।
अगर आप यह सोचकर जा रहे हैं कि आपके हाथ कोई बड़ा जैकपॉट लगेगा, तो बिल्कुल मत जाइए। हां, सनी लियोनी के बहुत बड़े फैन हैं तो शौक से जाइए।
फिल्म 'जैकपॉट' पहले ही घंटे में फिल्म इतना पकाती है कि कई दर्शक सिनेमाहॉल छोड़कर निकल जाते हैं। अफसोस, अपन तो यह भी नहीं कर सकते थे, वर्ना यह यह रिव्यू कौन लिखता? फिल्म देखते हुए लगता है निर्देशक कैजाद गुस्ताद यह भूल गए थे कि मनोरंजन नाम की भी कोई चीज होती है। थ्रिलर और सस्पेंस फिल्म होने का दावा करने वाली जैकपॉट किसी धारावाहिक का नीरस एपिसोड लगता है, बल्कि वह भी इससे ज्यादा मनोरंजक हो सकता है।
फिल्म की कहानी है बॉस (नसीरुद्दीन शाह) की। वह गोवा में एक कसीनो का मालिक है। बॉस फ्रांसिस (सचिन जोशी), माया (सनी लियोनी), एंथनी (भरत निवास) और कीर्ति (एल्विस) के साथ अपने ही कसीनो में गलत ढंग से पांच करोड़ रुपए का जैकपॉट जीते की साजिश रचता है। बाद में इसी साजिश में साजिशों का सिलसिला चल पड़ता है और सब एक-दूसरे पर शक करने लगते हैं।
निर्देशक और लेखक कैजाद गुस्ताद ने क्या सोचकर यह फिल्म बनाई, कुछ समझ में नहीं आता। शुरू से ही फिल्म में झोल ही झोल हैं। स्क्रिप्ट इतनी उलझी हुई है कि दर्शक लगातार कंफ्यूज रहते हैं। समझ में ही नहीं आता कि कहानी किस दिशा में जा रही है। फिल्म में इतने ज्यादा फ्लैशबैक हैं कि दर्शक फिल्म से जुड़ ही नहीं पाता। कोई भी प्लॉट दर्शकों को न तो चौंका पाता है और न ही हैरान करता है।
फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है। यह लालच, धोखाधड़ी और दोस्ती में दगाबाजी के पुराने फॉर्मूलों पर आधारित है। इस तरह की कहानी पर हम जाने कितनी फिल्में देख चुके हैं।
फिल्म में थोड़ा बहुत जो अभिनय नजर आता है, वह नसीरुद््दीन शाह की बदौलत है। बाकी सनी लियोनी क्यों बॉलीवुड फिल्मों में आ गईं, ये तो वही जानें। उनसे अभिनय की कोई उम्मीद नहीं थी और वह कोई उम्मीद जगाती भी नहीं। हां, जिस्म की नुमाइश में कसर बाकी नहीं रखतीं। सचिन जोशी और अन्य कलाकार भी कुछ खास नहीं कर पाए हैं।
फिल्म का यही एक पक्ष है जो थोड़ा बेहतर है। खासतौर पर अरिजीत सिंह की आवाज में कभी जो बादल बरसे गाना कानों को सुकून दे जाता है।
अगर आप यह सोचकर जा रहे हैं कि आपके हाथ कोई बड़ा जैकपॉट लगेगा, तो बिल्कुल मत जाइए। हां, सनी लियोनी के बहुत बड़े फैन हैं तो शौक से जाइए।
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