दीपक की बातें

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Saturday, September 14, 2013

बेशर्मी की हद के पार 'ग्रैंड मस्ती'

डेढ़ स्टार
क्या वाकई फिल्मों पर बाजारवाद हावी हो गया है? क्या सौ करोड़ रुपए कमाने की लालसा इस कदर हावी हो गई है कि हमें कुछ भी गंदगी परोस दी जाएगी? ऐसे कई सवाल फिल्म ग्रैंड मस्ती को देखते हुए जेहन में लगातार आते रहते हैं। साथ ही याद आती रहती हैं ऋषिकेश मुखर्जी के दौर की शुद्धतम कॉमेडी वाली फिल्में, जिन्हें देखकर हम हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते हैं।



कॉमेडी के नाम पर द्विअर्थी संवाद, अश्लीलता और नंगेपन की तमाम हदें पार हम भौंडेपन और घटियापन की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। एडल्ट कॉमेडी के नाम पर ग्रैंड मस्ती जो कॉमेडी परोसती है वह पूरी तरह से अपच है। 'जो समाज में हो रहा है वही तो फिल्मों में दिखाया जा रहा है' जैसी बातें अब बेशर्मी छुपाने का बहाना ही लगती हैं। क्या सुपर कूल हैं हम जैसी फिल्मों के सिलसिले को आगे बढ़ाती ग्रैंड मस्ती एक 'खास' दर्शक वर्ग के लिए है। कहीं न कहीं यह उस दर्शक वर्ग को संतुष्ट भी करती है।


भला कौन सा स्कूल होगा, जहां लड़कियां हमेशा बिकनी में रहती हैं? मगर इस फिल्म में ऐसा है। सिर्फ इतना ही नहीं, इस फिल्म के प्रिंसिपल की पत्नी, बहन और बेटी के नाम को बेहद गंदे तरीके उच्चारित किया जाता है। रिश्तों-नातों तक को नहीं बख्शा गया है। नहीं इस कॉलेज में एबीसीडी का ऐसा मतलब बतलाया जाता है जिसे सुनकर शर्म आती है और निर्देशक इसे अपनी काबिलियत समझता है। पुरुष और पात्रों के प्राइवेट हिस्सों को क्लोज-अप में इतने भद्दे तरीके से शूट किया गया है कि जिसका विवरण भी नहीं दिया जा सकता।


फिल्म के पहले दृश्य से ही अश्लीलता का जो खेल शुरू होता है वह पूरी फिल्म में लगातार चलता रहता है। मानो फिल्म के लेखक और निर्देशक ने मान लिया है कि डबल मीनिंग के नाम पर कुछ भी दिखाया या कहा जा सकता है। कई जगहों पर तो ऐसे दृश्य हैं कि लगता है कोई सी-ग्रेड फिल्म देख रहे हैं। पूरी फिल्म में ऐसा दिखाया गया है कि मानो औरतें सिर्फ सेक्स करने के लिए बनी हैं, या फिर कम से कम कपड़े पहनकर घूमने के लिए। लगता है कि फिल्म के निर्देशक जैसे भूल गए हैं कि ह्यूमर और चीपनेस में कोई अंतर होता है। हीरोइनों के हिस्से में अपने शरीर का जितना हो सके प्रदर्शन करना आया है तो पुरुषों के हिस्से अश्लीलता से भरे डायलॉग्स। न कहानी है, न गाने, फिल्म टोटल बकवास है।

दीपक मिश्र


3 comments:

  1. शुक्रिया इस समीक्षा का .. पैसे बचा दिए आपने ...

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  2. नवोदित सक्तावतFriday, 25 October, 2013

    ये वही इंद्रकुमार हैं ना बेटा वाले? वह तो ठीक थी लेकिन इश्क में उनकी नाटकीयता दिखने लगी थी। इसके बाद वे कहां चले गए पता नहीं, लेकिन लौटे तो यह आइटम लेकर? यानी इस बीच उन्होंने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया? क्या शोध कर लिया, क्या जान लिया, क्या पहचान लिया? ​फिल्म देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या वे विक्षिप्त हो गए हैं?

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