ज़रा याद करिए तो कैसे अटल जी के जमाने में खेल की बदौलत रिश्तों कि तल्खी में कमी आयी थी। हालाँकि यह भी बहुत बड़ा सच है कि हमारा पडोसी है बड़ा उद्दंड। कभी घुसपैठी भेजकर तो कभी रोकेट दागकर वो सीमा पर हालात को खराब बनता रहता है। हो सकता है हमारे सियासतदा उसे एक सबक सिखाना चाहते हों। लेकिन यह तरीका सही नहीं हैं भाई। खेल को सियासत में घसीटना ठीक नहीं है।
Wednesday, January 20, 2010
ये कैसा खेल है भाई
खेल को हमेशा दिलों को जोड़ने वाला माना जाता है। लेकिन हाल ही में आईपीएल की नीलामी के दौरान जो देखने में आया उसे शुभ संकेत तो नहीं माना जा सकता। जिस तरह से नीलामी के दौरान पाकिस्तानी खिलाडियों के साथ भेदभाव हुआ उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। हालंकि यह भी सच है कि कई देशों के खिलाडी नहीं बिके लेकिन अफरीदी जैसा बड़ा नाम न बिके वह भी टी-२० फार्मेट में तो कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ तो जरूर है। हो सकता है कि खिलाडियों के नाम लिस्ट में शामिल ही न रहे हों। या फिर यह भी हो सकता है कि टीम मालिकों से कह दिया गया हो कि पाकिस्तानी खिलाडियों को न खरीदें। फिर अगर ऐसा ही करना था तो पहले आईपीएल में ही पाक खिलाडियों को न खिलाते। खैर सच जो भी हो लेकिन एक बात साफ है कि इससे क्रिकेट जगत में बहुत ही ख़राब मैसेज गया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि चूंकि पाकिस्तानी खिलाडियों कि उपलब्धता सुनिश्चित नहीं थी इसलिए ऐसा हुआ होगा। अगर ऐसी बात थी तो फिर पाकिस्तानी खिलाडियों को नीलामी में शामिल ही नहीं करना चाहिए था। इस तरह से पूरी दुनिया के सामने जलील करने का क्या तुक। सियासी महकमे का कहना है कि वह इस मामले पर कुछ नहीं कह सकती क्योंकि आईपीएल एक निजी संस्था है। शायद आप में से बहुत लोगों को लगे कि मैं पाकिस्तानी खिलाडियों कि कुछ ज्यादा ही तरफदारी कर रहा हूँ, लेकिन एक बात बता दूं अगर एक आम दर्शक से पूछेंगे तो वह भी आह भरते हुए कहेगा, यार अफरीदी को शामिल कर लेते, क्या लम्बे-लम्बे छक्के लगाता है। सच कह रहा हूँ, आम आदमी को इन बातों से कोई मतलब नहीं कि सियासत किस बात कि मंज़ूरी देती है किस बात को नहीं। वह तो बस शोएब अख्तर कि गेंद पर सचिन को सिक्स लगाते देखना चाहते हैं। पाकिस्तानी खिलाडियों का इस तरह आईपीएल से दूर हो जाना आम दर्शक के लिए नुक्सान की बात है।
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ऐसा ही है!
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