
सचिन तेंदुलकर और वर्ल्ड कप , एक सपना, एक ख्वाहिश, एक कसक. हाइड एंड सीक से भरी एक ऐसी दास्तान जिसमें दिल तोड़ देने वाले कई लम्हे भी आए. ब्रायन लारा से उनका कंपैरिजन किया गया। कहा गया डॉन ब्रैडमैन उनसे बेहतर बैट्समैन थे. आज अगर ब्रायन लारा कहें कि मेरे पास टेस्ट क्रिकेट में 400 रनों की इनिंग्स का रिकॉर्ड है तो सचिन भी फख्र से कह सकते हैं, मेरे पास कप है।
जहां देखा था सपना, वहीं हुआ पूरा सचिन का वर्ल्ड कप ड्रीम पूरा हुआ। वहीं, जहां से उन्होंने यह सपना देखना शुरू किया था। उसी मुंबई की सरजमीं पर, जहां सचिन ने क्रिकेट की एबीसीडी सीखी थी। सचिन खुद कहते हैं, ‘जब मैं बच्चा था तो मैं इस सपने के साथ बड़ा हुआ कि एक दिन वर्ल्ड कप हाथ में उठाउंगा।’ 1989 में सचिन ने क्रिकेट की दुनिया में कदम रखा. इसके बाद उन्हें 1992 में पहला वल्र्ड कप खेलने का मौका मिला. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया की धरती पर हुए इस वर्ल्ड कप में सचिन ने शानदार बैटिंग की थी। सात मैचेज में उन्होंने 283 रन बनाए थे, मगर टीम इंडिय का सफर पहले राउंड में ही खत्म हो गया।
1996 का दर्द
अब 1996 की बारी थी। भारत, श्रीलनका और पाकिस्तान इस वर्ल्ड कप के होस्ट थे। अपनी जमीन पर खेले गए इस मुकाबले में पूरी उम्मीद थी कि टीम इंडिया विजेता बनेगी। जब सफर सेमीफाइनल त· पहुंचा तो सचिन का बचपन का सपना पूरा होता लगा. मगर शायद अभी और इंतजार बाकी था. सेमीफाइनल में श्रीलंका से हार के साथ इंडिया का वर्ल्ड कप में सफर खत्म हो गया. सचिन के बालसखा आंसुओं में डूब गए और पूरा देश गम के सागर में। सचिन ने 7 मैचेस में 523 रन बनाए थे।
1999 का वर्ल्ड कप
ख्वाब आगे-आगे भाग रहा था और सचिन ख्वाबों ·ा पीछा ·रने में लगे हुए थे, 1999 का वर्ल्ड कप आ गया था। इंग्लैंड की धरती पर अजहरुद्दीन की कप्तानी में इंडियन टीम पहुंच चुकी थी। मगर साउथ अफ्रीका और जिंबॉब्वे के हाथों मिली हार ने टीम का आगाज खराब कर दिया। जिंबॉब्वे के मैच से पहले सचिन को वापस इंडिया आना पड़ा. वह अपने पिता को खो चुके थे. इस नाजुक क्षण में भी सचिन नहीं टूटे और वापस लौटकर अगले मैच में केन्या के खिलाफ सेंचुरी बनाई. टीम किसी तरह सुपर सिक्स तक तो पहुंची, मगर सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सकी। सचिन ने 7 मैचेस में 253 रन बनाए थे.
2003 की कसक
अगला वर्ल्ड कप साउथ अफ्रीका की सरजमीं पर 2003 में खेला गया. यह एक ऐसा वर्ल्ड कप था, जहां सचिन का सपना पूरा तो नहीं हुआ पर वह इसके काफी करीब तक पहुंच गए थे. फाइनल में कंगारुओं के खिलाफ मिली हार ने एक बार फिर उन्हें मायूस कर दिया. सौरव गांगुली की कप्तानी और सचिन की टूर्नामेंट में शानदार बैटिंग के बावजूद टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. सचिन ने इस वर्ल्ड कप में 11 मैच में 673 रन बनाए. वेस्टइंडीज में 2007 में हुआ वर्ल्ड तो टीम इंडिया के लिए एक भूल जाने वाला डरावना ख्वाब साबित हुआ. पहले ही मैच में बांग्लादेश के खिलाफ मिली हार के बाद टीम उबर नहीं सकी। पहले ही राउंड से टीम बाहर हो गई. पर्सनल लेवल पर भी सचिन के लिए टूर्नामेंट यादगार नहीं रहा, 3 मैचेस में वह सिर्फ 64 रन ही बना सके ।
एंड ही इज चैम्पियन
मगर कहते हैं ना कि इंतजार का फल मीठा होता है. आखिर सचिन का सपना पूरा हुआ. वर्ल्ड कप की ट्रॉफी उन्होंने चूमने का स्वाद उन्होंने महसूस किया. इस बीच ना जाने कितने कसैले एक्सपीरियंस हुए, मगर सचिन ने अर्जुन की तरह सिर्फ वर्ल्ड कप पर निगाह जमाए रखी और आज वह उनके पास है।
4 अप्रैल को i next में publish