दीपक की बातें

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Saturday, February 21, 2015

नवाज़ का बदला अंदाज़

बदलापुर देखने के दौरान नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के लिए तालियां बजती देख दिल खुश हो गया। पिछली सीट पर बैठे दर्शक उनकी फिल्मों के नाम लेकर उनके रोल का रेफरेंस दे रहे थे। इस फ़िल्म में भी नवाज़ ने लायक के रोल का अंदाज़ देखने ही नहीं, याद रखने लायक बना दिया है। हर पैंतरा, हर अंदाज़ बिलकुल शातिर। अगर मैंने कभी दोबारा ये फ़िल्म देखी तो निश्चित तौर पर वजह नवाज़ होंगे।

कहना गलत नहीं होगा कि नवाज़ हमारे वक़्त के सक्षम अभिनेताओं में शुमार हो चुके हैं। वो मनोज बाजपेई, इरफान, ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह की जमात में शामिल होते जा रहे हैं। जितनी गहराई के साथ वो अपनी भूमिका निभाते हैं वो लाजवाब है। चाहे गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का फैज़ल हो या कहानी का वो सख्तमिज़ाज़ इंस्पेक्टर खान। तलाश का तैमूर लंगड़ा हो या फिर किक का सनकी शिव गजरा।

उनकी ये रेंज और विविधता जाहिर है कि उनके संघर्ष से उपजी है। 15 साल कोई कम नहीं होते। इस दौरान शूल में वेटर, सरफ़रोश में अपराधी, मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर में मंत्री का गुंडा और ऐसे ही जाने कितने रोल जो परदे पर बस चंद मिनट ही दिखे। उन गुमनामी के दिनों से आज तालियों के बीच के सफ़र में जो तपिश मिली वो शायद कोई महसूस न कर सके। मगर नवाज़ुद्दीन की ज़िंदगी इस बात के लिए प्रेरित करती है की संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता। बस टिके रहने का जज़्बा होना चाहिए। सलाम नवाज़ भाई।

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